मुक्तक
भूल मानवता रचे साजिश हँसे हैवानियत।
चाल चीनी चल गया अब कौन लेगा कैफ़ियत।
आज दहशत से भरा दिखता यहाँ इंसान है-
लाश के अंबार देखो रो रही इंसानियत।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
भूल मानवता रचे साजिश हँसे हैवानियत।
चाल चीनी चल गया अब कौन लेगा कैफ़ियत।
आज दहशत से भरा दिखता यहाँ इंसान है-
लाश के अंबार देखो रो रही इंसानियत।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’