मुक्तक
१.
मैं कभी कसी दोस्त बनने न पाई पुर्दिल
कोई सांस-सांस में दोस्त बन पल रहा है !
…सिद्धार्थ
२.
समय के नर्म रेत पर एक दिन यूँ ही गुजर जाऊँगी
तुम्हारे लिए कुछ मचलते से अल्फाज़ छोड़ जाऊँगी !
***
…सिद्धार्थ
३.
शंख को बिना होठ लगाए कौन है जो, अनहद ध्वनि निकाल पाया है
शयरों के लफ्ज़ों में, गम को ख़ुशी से अलग कौन कर पाया है !
***
…सिद्धार्थ