मुकाम
ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते चलते!। ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।
ईमान है या धोखा मंज़िल हैं या मौका तूफ़ाँ मुश्किलों में जिन्दगी के हर कदम पे एक चिराग जलाया हमने ये चिराग मुस्कुराते यादों के आॖईने में।।
ए मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते!।
यकी आरजू के वादों कोशिशों में कितने ही दौर गुजरे कल भी अधूरा इंसा आज भी अधूरा आदमी ।।
ये कहां आ गए हम यूं ही राह चलते चलते ।।
जिंदगी में बहुत ख्वाहिसे कुछ पूरी कुछ अधूरी जिंदगी में कभी न मिली मंजिल न हुई कभी इच्छा पूरी अधूरी जिंदगी की अधूरी चाहतों में यूं ही राह चलते चलते।।
ये मुकाम आ गया है यूँ राह चलते चलते!।
जिन्दगी खूबसूरत मंजिलों का कभी मंज़र मुस्कान का मुसाफिर
आसुओं का कही समन्दर कुछ
जिंदगी हमने भी है निभाई कुछ खोते कुछ पाते ही राह चलते ।।
ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते चलते।।
जिंदगी के रास्तों में रिश्तों का वास्ता, खुशियों का नशा है ग़म कि है गहरायी ये कहाँ आ गये हम जिंदगी कि तलाश करते करते ।!
ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।