लम्हें संजोऊ , वक्त गुजारु,तेरे जिंदगी में आने से पहले, अपने
सब व्यस्त हैं जानवर और जातिवाद बचाने में
“ख़्वाहिशों का क़ाफ़िला गुजरता अनेक गलियों से ,
" बोलती आँखें सदा "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
बड़ा हीं खूबसूरत ज़िंदगी का फलसफ़ा रखिए
हमें अपने जीवन को विशिष्ट रूप से देखना होगा तभी हम स्वयं के
तू मेरे ख्वाब में एक रात को भी आती अगर
सियासत कमतर नहीं शतरंज के खेल से ,
दोहे- चार क़दम
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ऐसा कभी क्या किया है किसी ने
आज तक इस धरती पर ऐसा कोई आदमी नहीं हुआ , जिसकी उसके समकालीन
అమ్మా తల్లి బతుకమ్మ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
जब कभी तुम्हारा बेटा ज़बा हों, तो उसे बताना ज़रूर
जिन्दगी सदैव खुली किताब की तरह रखें, जिसमें भावनाएं संवेदनशी