मुकाम
कैसे समझाऊ, खुद को
के इतने बडे जहान में
तेरा कोई मुकाम नही था।
किये तुने कितने बुरे काम
पर तु इतना बुरा नही था।
था तु उन सब में शामिल
पर तेरा उनमे,कही नाम नही था।
सब कुछ था मेरे पास
बस एक मुकाम नही था।
खरीद लेता मैं ,ये पूरा आसमान
मगर मेरे पास,उसे रखने का कोई इन्तजाम नही था।
कैसे खरीद लेता मैं वो सब
जिसका कोई दाम नही था।