मुकदमा कर दूँ
दिल और दिमाग़ दोनों विपरीत थे
द्वन्द अंतस में चलते रहे रातभर
मन ने ठाना कि प्रभु से लड़ाई करूंगा
दिल ने कहा है ये छोटी बात भर
दिमाग़ ने कहा जाके उलाहना दे दें
मन कह रहा प्रभु पर मुकदमा कर दें
खूब बहस होगी और बातों की लड़ाई होगी
ज़ब भी उस मुकदमें की सुनवाई होगी
तथ्य उनके पास होंगे ये पता है मुझे
मैं कहूंगा मेरी खता आज बता दो मुझे
आज मामले को यहीं रफा दफ़ा करदें
मन कह रहा प्रभु पर मुकदमा कर दें
नाना प्रकार के विपत्तियों के धागे ऐसे क्योंकर बुनते हो
लाख बार उलाहना पाकर भी क्यों नहीं मेरी सुनते हो
कोई दुश्मनी है तो बतला दो, मैं भी तो तुम्हारी मंशा जांनू
हर समय दुखी रहता हूँ मैं,इसे कौन सी विपदा माँनू
अरे! मेरी जिंदगी के साथ कभी तो वफ़ा करते
मन कह रहा प्रभु पर मुकदमा कर दें
-सिद्धार्थ गोरखपुरी