Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 May 2023 · 9 min read

मीना की कविताएं

1- जीवन ज्योति जलाये रखना,मुकुलित मन्थन बना रहे।
जीवन का प्रतिक्षण प्रतिपल हम,पर्व रूप में मना रहे।
स्नेह सुवासित कृपा तुम्हारी,बनी रहे माँ जगदम्बे-
प्रीति अनवरत हृदय सुहर्षित,श्याम जलद इव घना रहे।

डा.मीना कौशल ‘प्रियदर्शिनी,

2-सब ताप हरोसंताप हरो।
हर पाप कर्म से दूर करो।
मेरे कर्मों के प्रहरी तुम-
मन भक्ति भाव से पूर करो।

जीवन तेरा आभारी हो।
मानवता से उपकारी हों।
सत्कर्मों का सच्चा साथी-
मानस मन्थन अविकारी हो।

हे पूर्ण स्वरूपे पूर्ण ब्रह्म।
दो ज्ञान हमें मिट चले दम्भ।
अन्तस् में राज तुम्हारा हो-
हो तात मात तुम परम् ब्रह्म।

है एक सहारा जीवन में।
बसते रहना मेरे मन में।
चरणों में अर्पित यह जीवन-
बीते हरि तव यश मन्थन में।

आभार प्रकट कर पाऊँ ना।
है पास हमारे शब्द कहाँ।
अक्षर स्वामी हे नादब्रह्म-
अनहद की ध्वनि बज रही जहाँ।

मम कर्मक्षेत्र के इस थल में।
तुम रहो फसूँ ना दल-दल में।
सर्वत्र व्याप्त करुणा तेरी-
कर रही कृपा जो पल -पल में।

शुभ सत्त्वभाव के हे स्वामी।
पथ दर्शक हे अन्तर्यामी।
हस्त गहे रहना हे प्रभुवर-
मैं बनूँ सत्त्वपथ अनुगामी।

मानस में तेरा विचरण हो।
नवज्योति प्रज्ज्वला विकिरण हो।
आभा में तेरे ज्योतित मन-
अन्तस् में तेरा प्रकरण हो।

हे प्रभु मुझको आश्वस्त करो।
तम प्रबल कुटिलता ध्वस्त करो।
पथ के कंटक मुरझा जायें-
शुचिमय शुभ सत्त्व प्रशस्त करो।

डा.मीना कौशल
‘प्रियदर्शिनी
गोण्डा ,उत्तर प्रदेश

3-भाग्यवान माता पिता, कन्या धन सौगात।
दो बहनों में प्रेम की,रहे निराली बात।।
रहे निराली बात,सदा सुख दुख को बाँटे।
अन्तर्मन की व्यथा,कहें समझायें डाँटे।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

4- बोझ होती नहीं बेटियाँ तो कभी,
ये तो सम्मान हैं पितृ- अभिमान हैं।
स्नेह की ये मृदुल झंकार हैं मधुर,
वेद श्रुतियों में वर्णित ये श्रुतिगान हैं।
बोझ धरती का कम कर रही बेटियाँ,
हैं सभी क्षेत्र में थामकर कर्म को-
सूर्य की तेज हैं चन्द्र की शीतला,
दुर्गा लक्ष्मी गिरा की ये वरदान हैं।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

5-: रामायण तुलसी दिया,पावन कार्तिक मास।
भोर स्नान नवाह्न नित,मास परायण आस।।
मास परायण आस,सदा विश्वास विभो पर।
नित करती अरदास, गर्व हो आप प्रभो पर।।
तुलसीपूजन ध्यान सुधारस,मान परायण।
प्रातः कर स्नान, पढ़ें पूरण रामायण।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

: 6-चाहे जितनी चलें आँधियाँ ,
दीपक को तो बस जलना है।

मागें हमसे समय हमारा,
पथ को आलोकित करना है।

ना हो पथ में विकट अँधेरा,
तम को हरदम ही हरना है।

जलकर ज्योतित होकर हमको,
माँग अमावस की भरना है।

बाती घृत की तेल सनेहिल,
तिमिर मिटाना है पलना है।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

7-
रूप रघुराई में सिय जी समाई हैं।
जानकी की ज्योति में प्रभुत्व रघुराई हैं।
अर्द्धनारीश्वर उमा के संग शम्भुनाथ-
राधिका की ज्योति में प्रकाश यदुराई हैं।

पूर्णरूप पूर्णकाम शक्तिसंग छविधाम।
प्रेम के स्वरूप ब्रह्म क्षीरनिधि अभिराम।
सत्त्वस्वरूप तेज ज्योति में प्रकाश दिव्य-
सत्ता है प्रकृति की ब्रह्म स़ंग अविराम।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

8-: रोग निवारक देवता ,धन्वन्तरि भगवान।
अमृत कलश ले आ गये,धन्य धरा का मान।।

त्रयोदशी धन धान्य की,रहें सुखी सब लोग।
तन मन से सबके मिटे,व्याधि सकल भव रोग।।

भोग बताशे खील का, अर्पित हो मुस्कान।
मन मन्दिर मम गेह में,बसो अम्बिके आन।।

सुरभित हो दीपावली, बाल वृन्द नर नारि।
उमा संग रक्षा करे,गणपति देव पुरारि।।

श्री हरि मम गृह वास कर,हरिये सकल कलेश।
प्रथम पूज्य सबको नमन,रिद्धि सिद्धि विघ्नेश।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

,9-तज गये असमय सभी की
आज पितु की पुण्यतिथि है।
व्यग्र है मन प्रात से ही
दीप की स्नेहिल अवलि है।।
पर हमारे नेत्र में तो
पिताजी की छवि बसी है।
आज एकादश बरस हो
एक स्मृति ही बची है।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी
10-: नहीं बहाना मुझे अश्रु जग सरिता में
मै अपना अस्त्तित्व खोजती सविता में।
मेरे पग पग पर काँटे या फूल मिलें
मै गुंजित होती रहती हूँ कविता में।।

गुंजायमान मै मृदुल सर्जना के स्वर में
दैदीप्यमान दीपक बन जाऊँ स्वयं सफर में।
है अनुकम्पा तेरी मम अभिलाषा है
मेरे पथ आलोकित हों तव तेज प्रखर में।।

Dr. Meena kaushal
[11-: जीवन में कितने घात सहे।
प्रारब्ध छुपे आघात सहे।
प्रतिक्रिया वचन से कर बैठी-
फिर कितने कटु प्रतिघात सहे।

अर्पण हैं मर्म सभी तुमको।
अर्पित हैं कर्म सभी तुमको।
मेरे हर कर्मो के दृष्टा-
पूजित हैं धर्म सभी तुमको।

पीड़ा मुस्कान तुम्हे अर्पण।
जीवन का गान तुम्हे अर्पण।
मेरी रक्षा में छाया बन-
सारे अरमान तुम्हे अर्पण।

रहना प्रतिपल इस अन्तस् में।
छवि रहे माधुरी मानस में।
हे राधा के घनश्याम सुधा-
संसृति में बसे भक्ति रस में।

आह्लादित हो जीवन मेरा।
अनहद गुंजित मन्थन मेरा।
तव नेहसुधा से परिपूरित-
आप्लावित हो ये मन मेरा।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी
11-: भास्वर किरणों को साथ लिए,
भगवान भास्कर उदित हुए।
खगकुल करते मधुरिम कलरव,
शुभगान प्राण मन मुदित हुए।
अरुणोदय ऊषा की लाली,
पाकर प्राची के गात खिले-
स्वर्णिम प्रातः की नव बेला,
में तमस् गात संकुचित हुए।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

[13/11/2022, 08:00] Dr. Meena Kaushal: इक रहस्य की छाप ले,उभरा छायावाद।
नव्य सृजन की माधुरी, कविता सुखद प्रसाद।।

भेज रही निज सृजन से,प्रियतम को सन्देश।
ईश्वरत्व के प्रेम से,सजा काव्य परिवेश।।

पावन तिथि पर है नमन,काव्य जगत की ज्योति।
गहरे मन्थन पैठ कर, करुणा की प्रद्योति।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी
[12] . : भास्वर किरणों को साथ लिए,
भगवान भास्कर उदित हुए।
खगकुल करते मधुरिम कलरव,
शुभगान प्राण मन मुदित हुए।
अरुणोदय उषा की लाली,
पाकर प्राची के गात खिले-
स्वर्णिम प्रातः की नव बेला,
में तमस् गात संकुचित हुए।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

12-. : खत बच्चों के नाम लिखूँ।
स्नेह भरा पैगाम लिखूँ।।

उत्तम हो अपनी दिनचर्चा।
खेल कूद हर शाम लिखूँ।।

प्रातः उठकर दौड़ लगाना।
झटपट घर का काम लिखूँ।।

पढ़ना लिखना आगे बढ़ना।
ऊँचे करना नाम लिखूँ।।

मोबाइल को सदा देखना।
बहुत दुखद परिणाम लिखूँ।।

मात- पिता गुरुजन का कहना।
मान सुखद अंजाम लिखूँ।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

13- : कल्पना में भर रही हूँ, व्योमचुम्बी मैं उड़ाने।
आस्था विश्वास मन में,ले चली मैं गीत गाने।
तुम मिलोगे हर सफर में,हर कदम पर स्नेह लेकर-
मैं हठी तेरे सहारे, चल पड़ी दीपक जलाने।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

14-.: धारण कर्म पुनीत कर,लक्ष्मीबाई वेश।
झलकारी वीरांगना, हुई अवतरित देश।।

मातृभूमि हित किये शठ , दुश्मन से संग्राम।
झांसी का कण-कण करे , झुक शत बार प्रणाम।।

मनसा वाचा कर्मणा, करके कृत्य महान।
वीरसुता हँसकर हुई, माटी पर कुर्बान।।

मना रहे हम जन्मदिन, होकर भावविभोर।
जयध्वनि गुंजित गगन में, खगकुल करते शोर।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

15-: तोड़ दो कटु श्रंखला को कल्पना के पार जाकर।
मोड़ दो अपशिष्ट नाले स्वच्छ सरिता को बहाकर।
पुनर्जीवित हो उठेती सरस कल्लोलिनी अपनी-
छोड़ दो सारी व्यथाएं भाग्य में भगवान पाकर।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

16- : शिव बरात

चले शम्भु नन्दी असवारा,
बाजत दुन्दुभि वाद्य नगारा।
भाल चन्द्र छवि बरनि न जाहीं,
जटाजूट सुरसरित समाहीं।।

भस्मीभूत अंग बाघम्बर,
अर्द्धचन्द्र पुलकित छवि शशिधर।
नागस्रजक शोभित शुभ ग्रीवा,
कर त्रिशूल अतुलित बल सीवा।।

भाल त्रिनेत्र त्रिपुण्ड पुरारी,
शिवगण सकल देव नर नारी।
लखि बारात उमा हरषानी,
मैना मातु मोह डर मानी।।

जगतपिता हिमगिरि गृह आये,
ऋषि मुनि साधु सन्त हरषाये।
सफल तपस्या जगजननी की,
पूरण भयो आश अब मन की।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

17-: आया होली का त्यौहार,
करें माँ बहनों का सम्मान।
व्यथा न रुदन कहीं पर हो,
मिले घर बाहर उनको मान।।

मनायें होली का त्यौहार,
रखें वधुओं का कोमल मन।
किसी के घर की किलकारी,
सदा महकाती है आँगन।।

मनाकर होली का त्यौहार,
करें मनमन्थन ये चिन्तन।
हमारी कन्यायें होतीं,
मोल बिन धरती का ये धन।।

बिना कन्या घर है सूना,
बिना नारी घर भूत समान।
सभी तीजों त्यौहारों में,
गूँजते नारी के कल गान।।

कभी माता सुता भगिनी,
कभी पत्नी के सस्वर त्याग।
फूलता फलता है मानव,
सफल होकर खिल जाते भाग।।

मनाओ होली का त्यौहार,
नहीं हो नारी का अपमान।
हृदय नारायण के बसती,
धरो मन रूप रमा का ध्यान।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

18-: लहरी हो स्वर छन्द की,भाव करे गुंजार।
मनःसुमन की वेदना,मुखरित करे प्रसार।।
मुखरित करे प्रसार, स्वतः हो जाये गायन।
मधुमय काव्य स्वरूप, नवलरसमय करुणायन।।
भरे सदा उत्साह, रहें सीमा पर प्रहरी।
काव्य हृदय का गान,स्वतः गुंजित स्वर लहरी।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

19-: राधिके की चरण में शरण लीजिए।
कृष्ण का नाम अमृत वरण कीजिए।।

मुक्त होकर करें श्याम की साधना।
दम्भ की भावना का क्षरण कीजिए।।

सन्त मन में रमें राधिका श्याम जी।
सत्त्व के भाव जीवन मरण जीतिए।।

छूट जायें सभी बन्ध घनघोर ये।
तेज का ओज से उद्ध्वरण कीजिए।।

नाद अनहद की बजती हृदय में रहे।
नाम हरिनाम में मन हरण कीजिए।।

चक्षु में साँवरे संग हों राधिके।
बस यही रूप लोचन ग्रहण कीजिए।।

नाम गिरधर की यशगान माला लिए।
भाग्य भगवान से बस तरण लीजिए।।

मन की गलियों में भगवान आ जायेंगे।
कुन्ज गलियों में जाकर भ्रमण कीजिए।।

अपने अन्तस् का दीपक जलाते हुए।
ईश के ध्यान में बस रमण कीजिए।।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

20-: विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।
विद्यालय का प्रांगण प्यारा,
नूतन अनुसंधान मेरे।।

चलकर नटखट कदमों से,
पुलकित करतें हैं मन को।
है ईश्वर से यही प्रार्थना,
सफल बना लें जीवन को।।
आगे बढ़े चपल कदमों से,
ये पावन पहचान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

अक्षर ज्ञान प्रथम आराधन,
सीखें शब्द साधना ये।
करें मृदुल स्वर सुन्दर गुंजन,
पूरी करें कामना ये।।
इनकी शिक्षा प्रेरक पूरित,
ये बच्चे अभिमान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

सहज आचरण सच्ची वाणी,
जिज्ञासित भोले भाले।
आँखों में इन बच्चों ने,
हैं अनगिन सपने पाले।।
इनके स्वप्नों को पढ़ पाऊँ,
प्रतिदिन के अभियान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

खेल-खेल में इन्हे सिखाऊँ,
निपुण बनें गुणग्राही हों।
अपने जीवन की पगडण्डी,
अनुभव के ये राही हों।।
तेज सूर्य सा इन्दु सुधा सम,
बालवृन्द नवगान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा ,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

स्नेहसिक्त शिक्षा दे पाऊँ,
बालजगत के मनभावन।
मुखरित होकर इष्टदेव का,
सस्वर कर लें आराधन।।
पूर्ण करें भगवती शारदे,
शुभ सात्विक अरमान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

बनी रहे दन्तुरित सुशोभित,
मोहक स्मित मुखमण्डल।
अवसादों की काली छाया,
कभी न पाये इनको छल।।
कल-कल करती प्रतिपल वाणी,
ये बच्चे मुस्कान मेरे।
विद्यालय है मन्दिर मेरा,
हर बच्चे भगवान मेरे।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

21-: रोके से रुकते नहीं,अकथ कर्म फल मूल।
मिलते सबको कर्मफल, इसे कभी मत भूल।।
इसे कभी मत भूल,हमेशा कर्म करो सत।
जिससे हों सन्तुष्ट, देवता सबका अभिमत।।
करते सच्चे कर्म,शीश हरिपद में झुकते।
कर्म बने अधिकार,नहीं रोके से रुकते।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

२२-: ओ ममता की अथाह सागर,
मेरे शब्द हैं खाली गागर।
किन शब्दों से नमन करूँ माँ,
आप स्वयं करुणा की आखर।।

बनती थी जब तेरी लोरी,
मेरी निंदिया माँ।
बनती थी जब मेरी ताकत,
तेरी बिंदिया माँ।।

अपने अंकों में भर मुझको,
जब दुलराती थी।
सारे जहाँ की खुशियाँ,
तब मैं पाती थी।।

पढ़के मेरा चेहरा मेरी ,
भूख समझ लेती थी।
मुझको आगे बढ़ने का,
हर रोज दुआ देती थी।।

भर देती उत्साह कभी,
जब मैं थक जाती थी।
मेरा माथा चूमती जब,
मै विद्यालय जाती थी।।

आज भी मेरे पथ की प्रेरक,
तेरी छाया है।
तेरे अन्तस् का टुकड़ा ,
मेरी काया है।।

आज भी प्रतिबिम्ब आपका,
आता है सपनो में।
भोर होते ही मैं भी माँ,
खो जाती अपनो में।।

कोई दिन ऐसा न जाता,
स्मृति में माँ आती न हो।
और अधूरी तड़पन को माँ,
आकरके समझाती न हो।।

पूर्ण निर्वहन हो जाये,
फिर अपने पास बुलाना माँ।
नहीं मिली अन्तिम क्षण में,
तुम वहाँ मुझे मिल जाना माँ
Dr. Meena Kaushal

23-: रखना सबकी लाज जगत में,
जगतपिता जगदीश्वर।
वाणी ओजस्मयी प्रदायक,
हे केशव परमेश्वर।
सत्पथगामी मुझे बनाना,
स्नेह हस्त सिर पर रखना-
अन्तस् अनहद गीत जगा,
देना मेरे अखिलेश्वर।

सदा स्नेहमय साथ प्रभो का,
सम्बल मुझको देती।
आशा की नवकिरण ज्वलित हो,
सकल व्यथा हर लेती।
हे करुणाकर नवल प्रभाकर,
उदित रहें पथ मेरे-
एक परम विश्वास सुधा सी,
हृदय नेह भर देती।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी

: 24-धरती का तृण तृण गूँजे बड़े वेग से,
रामकृष्ण का पुनीत देश वन्देमातरम् ।
भिन्न भिन्न खान पान रंग रूप भिन्न भिन्न,
शान्ति भावना प्रणीत वेष वन्देमातरम्।।

कण कण धन्य पुण्यवान अति दिव्य है,
गूँजे प्रतिवेग से आकाश वन्देमातरम्।
सरिता पयोधि निर्झर झर झर करें,
महासिन्धु गूँजता आवाज वन्देमातरम्।।

दिव्यता सुभव्यता संस्कृति है सुरम्य,
गूँजे जहाँ पृथिवी गगन वन्देमातरम्।
दिव्यसत्ता आयी जहाँ विविध स्वरूप में,
भारती की भूमि को नमन वन्देमातरम्।।

तेजस्वी नाद सुन काँपें रिपु दल थर,
शक्ति तेज वीरता से पूर्ण वन्देमातरम्।
धीर वीर गान कर वीरगति पान कर,
क्रान्ति ओज शील सम्पूर्ण वन्देमातरम्।।

सोया जब देश मेरा छायी थी गुलामियाँ,
तो जागता प्रकृति में महान वन्देमातरम्।
गीता रामायण पुराण वेद स्वर छन्द,
बलिदानियों का स्वाभिमान वन्देमातरम्।।

मैथिली तुलसी कबीर सूर मीरा की,
वाणी में गूँज रहा काव्य वन्देमातरम्।
भारत के वीरपुत्र ललकारें अरिदल,
देशभक्ति गीत सुप्रताप वन्देमातरम्।।

भाष अभिलाष प्यारी हिन्दी की हुलास छवि,
देवनागरी का शुभ गीत वन्देमातरम्।
लालित्य मयी पद मृदुल प्रवाहमयी,
सृजन सु मातृवत प्रीत वन्देमातरम्।।

डा.मीना कौशल प्रियदर्शिनी

: 25-मन से तेरा पूजन कर लूँ

मेरी चिन्ता तुम करते हो,
मैं भी तेरा चिन्तन कर लूँ।

हर नौका पार लगाते हो,
भर आश आर्त क्रन्दन कर लूँ।।

तुम करुणामय करुणासागर,
तेरे यश का गुंजन कर लूँ।

मनसा पूरण तुम करते हो,
गुणगान तेरा मन्थन कर लूँ।।

करुणानिधि तेरी करुणा में,
मैं मन से अवगाहन कर लूँ।

मन से कर्मों से वाणी से,
बस तेरा आराधन कर लूँ।।

भावों के मन्दिर में सुन्दर,
तेरे छवि का दर्शन कर लूँ।

यशगान रहे रसना पर नित,
हे हरि तेरा वन्दन कर लूँ।।

अपने मानस अन्तस् तल को,
पुष्पित सुरभित चन्दन कर लूँ।

धूप दीप नैवेद्य सुगन्धित,
मैं भी पूजन अर्चन कर लूँ।।

कर्म सभी कर तुमको अर्पण,
उरतल से अभिनन्दन कर लूँ।

शरणागत हो तव चरणों में,
सौभाग्य सुखद जीवन कर लूँ।।

डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी
गोण्डा, उ.प्र.

69 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr. Meena Kaushal
View all
You may also like:
खारे पानी ने भी प्यास मिटा दी है,मोहब्बत में मिला इतना गम ,
खारे पानी ने भी प्यास मिटा दी है,मोहब्बत में मिला इतना गम ,
goutam shaw
यूं किसने दस्तक दी है दिल की सियासत पर,
यूं किसने दस्तक दी है दिल की सियासत पर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
सोचने लगता हूँ अक़्सर,
सोचने लगता हूँ अक़्सर,
*प्रणय प्रभात*
* प्यार का जश्न *
* प्यार का जश्न *
surenderpal vaidya
जिन स्वप्नों में जीना चाही
जिन स्वप्नों में जीना चाही
Indu Singh
उकसा रहे हो
उकसा रहे हो
विनोद सिल्ला
सफलता
सफलता
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
आया बसंत
आया बसंत
Seema gupta,Alwar
आजा माँ आजा
आजा माँ आजा
Basant Bhagawan Roy
*आस टूट गयी और दिल बिखर गया*
*आस टूट गयी और दिल बिखर गया*
sudhir kumar
जन्मदिन का तोहफा**
जन्मदिन का तोहफा**
Bindesh kumar jha
मेहनत
मेहनत
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
ज़ख़्म ही देकर जाते हो।
Taj Mohammad
भावुक हृदय
भावुक हृदय
Dr. Upasana Pandey
साथी है अब वेदना,
साथी है अब वेदना,
sushil sarna
दूर क्षितिज तक जाना है
दूर क्षितिज तक जाना है
Neerja Sharma
भारत का सिपाही
भारत का सिपाही
आनन्द मिश्र
भीगीं पलकें
भीगीं पलकें
Santosh kumar Miri
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं...
Anand Kumar
चाय और सिगरेट
चाय और सिगरेट
आकाश महेशपुरी
True love
True love
Bhawana ranga
आगे बढ़ने का
आगे बढ़ने का
Dr fauzia Naseem shad
तन, मन, धन
तन, मन, धन
Sonam Puneet Dubey
*हम हैं दुबले सींक-सलाई, ताकतवर सरकार है (हिंदी गजल)*
*हम हैं दुबले सींक-सलाई, ताकतवर सरकार है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
" झांझ "
Dr. Kishan tandon kranti
मैं जब भी लड़ नहीं पाई हूँ इस दुनिया के तोहमत से
मैं जब भी लड़ नहीं पाई हूँ इस दुनिया के तोहमत से
Shweta Soni
4255.💐 *पूर्णिका* 💐
4255.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
So many of us are currently going through huge energetic shi
So many of us are currently going through huge energetic shi
पूर्वार्थ
।। सुविचार ।।
।। सुविचार ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
'शत्रुता' स्वतः खत्म होने की फितरत रखती है अगर उसे पाला ना ज
'शत्रुता' स्वतः खत्म होने की फितरत रखती है अगर उसे पाला ना ज
satish rathore
Loading...