मिस इंडिया
मिस इंडिया
मिस इंडिया के अंतिम चरण में अदिति से प्रश्न किया गया कि भारत के पास ऐसा क्या है जो वह विश्व को दे सकता है ?
एक पल के लिए उसने सोचा और अपनी माँ कीं सुनाई कहानी याद आ गई, उसने दर्शकों से कहा ,
“ भारत के पास गौतम बुद्ध हैं , जिन्होंने अंतिम भोजन में विषैला कुकुरमुत्ता इसलिए ग्रहण कर लिया क्योंकि उनका आतिथेय निर्धन था , जो नहीं जानता था कि कुकुरमुत्ता विषैला है , खिलाने के लिए उसके पास और कुछ नहीं था , कहीं उसके प्रेम और भक्ति को ठेस न पहुँचे, बुद्ध ने बिना किसी संकोच के वह भोजन ग्रहण किया और मृत्यु को स्वीकार कर लिया, जिस देश में दूसरों की भावनाओं का इतना सम्मान किया जाता हो, वहीं देश मानवता के सही अर्थ जानता है , और यही भारत का सर्वोत्तम योगदान है । “
दर्शक उसकी बात सुन भाव विभोर हो उठे और उसे मिस इंडिया का ख़िताब मिल गया । उसके बाद वह देर रात तक लोगों, पत्रकारों, फ़ोटोग्राफ़र आदि से घिरी रही । होटल के कमरे में आई तो थक कर चूर हो चुकी थी , पर उसे माँ की बहुत याद आ रही थी , जो तीन महीने पहले ही इस दुनिया से जा चुकी थी ।
वह चार वर्ष की थी तो पिता की मृत्यु हो गई थी । ताया जी ने न केवल बिज़नेस से बेदख़ल कर दिया था अपितु घर से भी निकाल दिया था । माँ ने लड़कियों के कालेज के होस्टल में वार्डन की नौकरी कर ली थी , वह वहीं एक दो कमरों के मकान में माँ के साथ रहती थी । होस्टल में प्रायः उच्च मध्य परिवार की लड़कियाँ रहती थी , उनके कपड़े , जूते देखकर उसकी भी इच्छा होती कि वह भी सजे संवरे, परन्तु कभी भी माँ से किसी चीज़ के लिए ज़िद्द नहीं करती थी , वह बिना किसी के कहे , समय से पहले ही समझ गई थी कि उसकी माँ अकेली है , और उनका सामर्थ्य सीमित है ।
अदिति बड़ी होती रही , उसका ऊँचा लंबा क़द, रंग रूप देखकर एक दिन उसकी मित्र ने उसे मिस इंडिया फ़ैमीना का फार्म भरने के लिए कहा , जनवरी के आख़िरी दिन थे , हवा में पर्याप्त ठंडक थी , अदिति ने कहा ,
“ इस सर्दी में मेरे पास एक ढंग की जैकेट तो है नहीं , मिस इंडिया की वारडरोब कहाँ से लाऊँगी ?”
घर आकर उसने यह बात मां को बताई तो माँ ने बुद्ध की उपरोक्त कथा सुना दी ।
“ अब इसका इससे क्या नाता है माँ ।” उसने चिढ़ते हुए कहा ।
माँ मुस्करा दी , “ यही तो सबसे बड़ा सौंदर्य है , एक बार इसकी गहराई को समझना शुरू करेगी , तो तेरा व्यक्तित्व स्वतः निखरता चला जायेगा ,यही मनुष्य का सबसे बड़ा परिशोधन , यानि रिफाइनमेंट है , बाक़ी सब तो दिखावा है ।” माँ ने उसके बाल सहलाते हुए कहा ।
धीरे-धीरे अदिति को माँ की बात समझ आ रही थी और उसका व्यवहार सहज ही दूसरों से मित्रतापूर्ण होता जा रहा था , उसमें स्वतः एक आंतरिक अनुशासन और आत्मविश्वास जन्म ले रहा था । उन्नीस की उम्र में भी वह सहज हो रही थी ।
मिस इंडिया कंपीटिशन के लिए धीरे-धीरे कपड़ों का इंतज़ाम हो गया था और वह एक एक सीढ़ी ऊपर चढती हुई अंतिम चरण तक आ पहुँची थी , जो भी मिलता उसकी सहजता से स्वयं को सहज अनुभव करने लगता।
तीन महीने पहले जब मां की मृत्यु निकट थी तो माँ ने कहा था , “ तूं दुनियाँ में अकेली नहीं है , तुझे किसी का प्यार मिले न मिले, तूं सबसे प्यार कर सकती है , और जीवन में इतना पर्याप्त है ।”
माँ के मरने के बाद से उसने बस यही याद रखा था , और सारे दरवाज़े उसके लिए खुलते गए थे , पर आज माँ के लिए दिल बहुत उदास था , आँसू थम नहीं रहे थे , उसने मन में सोचा , मैं गौतम बुद्ध तो नहीं हूँ , फिर भी यदि कभी किसी के लिए कुछ कर सकूँ तो शायद माँ को खोने का दुख थोड़ा कम हो सके ।
…. शशि महाजन