मिल जाऊं कहीं यदि
चला जाऊंगा एकदिन, शायद मैं तुम्हें छोड़कर
दिल तोड़कर तुम्हारा नहीं, रिस्ता जोड़कर
आना – जाना, जाना आना लगा रहता है यहाँ
रखना याद हमें सदा, विनती है कर जोड़कर .
कौन रहा है, कौन रहेगा यहाँ सदा -सर्वदा
न रूकती है नदियाँ , न ठहरती हवा
सूरज भी जाता है प्रतिदिन दूसरे शहर में
चिड़ियाँ करती है कलरव वहां भी पुरजोर.
कुछ करें कि बढ़ते रहे हमेशा आज के बच्चें
कुछ करें कि नाज करें आप पर आप के बच्चें
कुछ करें कि भूले नहीं आपको आप के बच्चें
कहीं पत्थर न उठा ले वे, आप से मुँह मोड़कर.
खिला-खिला रहे, मुरझाएं नहीं आज के बच्चें
ताजे – ताजे फूलों से घर – आंगन महके हरदम
बिना किसी मतभेद के, मिलकर रहे आज के बच्चें.
माटी का चन्दन करें, भारत माता की जय बोलकर.
सोचा था अपने घर में रहूँगा, सात में से चार दिन भी
सात दिनों की जिंदगी होती है, लोग कहते है सबदिन
समय का घोड़ा सरपट चला जा रहा है हर पल
आँखो से भी मिलना, मिल गए कहीं किसी मोड़ पर.
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर
Munger