मिले मित्र
मिले मित्र
मित्र आज मिलते नहीं, मिलें मतलबी यार।
मौज कभी भाए नहीं,मतलब का व्यवहार।।
मित्र मिले तो कर्ण सा,अर्जुन कृष्ण समान।
बुरे मित्र से रामजी, रहे मौज अनजान।।
मित्र मित्र की जिंदगी, मित्र मित्र का नूर।
मित्र मिले पारस सदा,रहे कभी ना दूर।।
मित्र इत्र जैसा रहे,महका दे किरदार।
मित्र मान का धारवी,शिवमय हो संसार।।
मित्र हुवे हनुमान सा,करे हृदय को धाम।
कामी- क्रोधी- लालची,परे राखिए राम।।
रहे दिवाली हर घड़ी,नित घर बसते राम।
सुख संपत्ति आनंद में,बीतें आठों याम।।
दीप जले सत् ज्ञान का, वैभव अपरंपार।।
आठ लक्ष्मी घर बसें ,भरे रहें भंडार।।
विमला महरिया “मौज”