“ मिलि -जुलि केँ दूनू काज करू ”
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल ”
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सुनैत छी ?
की करैत छी ?
कतय छी ?
किछु काज करू
दिनभर कथि मे
ओझरायल
रहैत छी ?
कखनो लैपटॉप पर
कखनो मोबाईल पर
खेल खेलाइत
रहैत छी !
हम दिन भरि
नौओड़ि बनल रहैत छी !
घरक काज करू
लत्ता -कपड़ा साफ करू
पानि -पीढ़ि
सोझा राखू
तखन आहाँ
खाइत छी !
ओछाओन क इंतज़ाम
सेहो हम करैत छी
दिन -राति हम
घरक कार्य मे
ओझरायल हम रहैत छी !
भोरे -भोरे
सूति -उठि आहाँ क
काज मोबाईल देखनाई
घरक गप
छोड़ि दिओ
दिन -राति अछि
लैपटॉप सँ खेलनाई !
कहक लेल संगिनी
सँग नहि दैत छी
पता नहि कोन आहाँ
“रामायण” कोनो लिखइत छी ?
देखब आहाँ केँ
तकलीफ हैत
जखन हम चलि जायब
असगरे दिन -राति
झाम आहाँ
गुडैत रहब !
छोड़ि- छाड़ि काज सब
हुनका सँग लागि गेलहूँ
वो जे -जे कहलीह
हुनके संगे करैत रहलहूँ !
वो भेलीह
प्रसन्न
मिलि -जुलि केँ काज केलहूँ
आपस केर
मलिनता
क्षण मे समाप्त केलहूँ !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल ”
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
30.07.2022.