*मिलने वाला नहीं है *
उनकी फ़रियाद में कुछ ,मिलने वाला नहीं है ।
जाना वेजान पत्थर वो पिघलने वाला नहीं है ।।
हमें याद है अगरबत्तियां जलाने का शौक वो
धुँआ उड़ते देखा समझे ये रुकनेवाला नहीं है।।
गन्ध निकलकर फैलती चली गयी सब तरफ
अफ़सोस की नशा देर तक टिकने वाला नहीं है।।
डूबकर कुछ देर बाद माथा भी टेक दिया अपना
समझ में आया की ये दिल हिलने वाला नहीं है ।।
वेकार में जला दिया वो घी अपनी जिंदगी का
ढूंढते हैं उसे फिजूल,जो कहीँ मिलने वाला नहीं है।।
कितने ही पाँव पकड़ना उन बुतों के तुम्हें बताये
जान दे देना मग़र नाच पे थिरकने वाला नहीं है।।
पत्थर की साँसे कभी हवा में फैलती नहीं देखी
उनकी मरी लहरों का तिंनगा हिलने वाला नहीं है।।
जिसके जिश्म में अपनी किरणे नहीं हैं ‘साहब’ वे
उसकी इबादत में कोई हल निकलने वाला नहीं है ।।