मिथिला धरती।
मिथिला धरती।
-आचार्य रामानंद मंडल।
मिथिला रहे पून्य के धरती।
भरल रहे संत आ तपसी।१।
मिथिला रहे ज्ञान के धरती।
भरल रहे रिसी आ ज्ञानी।२।
मिथिला रहे राजा आ रानी।
भरल रहे कवि आ दरबारी।३।
मिथिला रहे राज दरबार अंहकारी।
भरल रहे माछ भात खनिहारी।४।
मिथिला रहे प्रजा दीन अज्ञानी।
भरल रहे प्रजा बन नौकरानी।५।
मिथिला रहे उच्च -नीच के धरती।
भरल रहे सम्मान -अपमान के करनी।६।
मिथिला रहे बाभन-सोलकन के धरती।
भरल रहे शोसक -शोसित से धरती।७।
मिथिला रहे सीता के धरती।
भरल रहे उगना चाकर से धरती।८।
मिथिला रहे सनातन कुल धरमी।
रामा भरल रहे शोसक अधरमी।९।
स्वरचित @सर्वाधिकार रचनाकाराधीन।
रचनाकार -आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।