मित्रता
पहले झगड़े
एक-दूसरे को परेशान किया।
खूब सता करके
अहम् का समाधान किया।
फिर पता नहीं कब
सामन्जस्य स्थापित हुआ?
जाने किन विचारों, किन भावों ने
दिल को छुआ?
चेहरे पर थी
जाने कैसी मासूमियत?
जिसने गहरे तक
आवाज दी।
अन्तः स्थल पर अपनी
छाप छोड़ दी।
मै तो इतना ही
समझ पाई,
मित्रता की पहली
सीढ़ी चढ़ आई।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)