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1 Apr 2024 · 1 min read

माॅ

माँ●

दूर कहीं जंगल से
सिर पे लादे लकड़ियों का गट्ठर
पहाड़ की ऊँची ढलान से नीचे
घण्टों में उतरती है, बूढ़ी माँ।
सताती है चिंता, अपने बेटों की,
दो रोटी बनाने की, खिलाने की।।
थकी हुई, बोझिल और उम्र की थकावट ने,
साहस और ममता के जाल में,
परिवार की परवरिश ने,
पत्थर सा बना दिया है, माँ को,
रोज यही काम है, पर बेबस है, माँ है,
रोटियां बनानी है, पेट भरना है,
अपने कुनबे का, जिसे अपने मजबूत हाथों,
परवरिश किया है जीवन भर,
कुछ नहीं बिगाड़ सकते, पहाड़ के ठोकर,
हिंसक जंगली जानवर,
यही तो सीखा है,
ममता की छाँव भारी है,
भारी मुसीबतों पर, क्योंकि वह माँ है
वह माँ है…………।।
……।।।।।नारी शक्ति…. माँ को समर्पित
रचना
*©मोहन पाण्डेय’भ्रमर’

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