मास्क और घूँघट
मास्क और घूँघट
गीत
मास्क में गर घुटन हो रही आपको।
खोल लूँ घुँघटा दे दो इजाज़त मुझे।।
मैं भी देखूँ जरा खूबसूरत जहां।।
छोड़ो पर्दा प्रथा दे दो राहत मुझे।
घर की चौखट न लाँघू रहूँ स्थान पर ।
एक इंसान हूँ मैं नहीं जानवर।।
बेबसी आपको लगती मर्यादा तो।
जुल्म सी लगती ऐसी रिवायत मुझे ।।
चारदीवारी में कब तकल गम सहें।
हों खुली वादियाँ बेफिकर हम रहें।।
जिंदगी इक सजा सी न लगने लगे।
मुस्कुराने की कबसे है चाहत मुझे।।
नारियां भी नहीं अब पराधीन हैं ।
ऊँचे ऊँचे पदों पर भी आसीन हैं ।।
दिल की हसरत यही मैं भी छू लूं गगन।
फिर किसी से न होगी शिकायत मुझे।।
आओ मिलके निभाएं रिवाजों को हम ।
बोझ नारी के सिर से करो थोड़ा कम।।
रुख पे चिलमन न हो तो हटालो नज़र।
आप भी तो दिखाएं शराफत मुझे।।
फर्ज नारी के सारे निभाऊंगी मैं।
लाज दोनों कुलों की बचाऊंगी मैं।।
शील शर्मोहया ज्योति सब जानती।
अब सुनाओ न कोई कहावत मुझे।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव