#कविता//मानव तुम कमज़ोर नहीं(वीर/आल्हा छंद)
“मानव तुम कमज़ोर नहीं”
मानव तुम कमज़ोर नहीं हो , भाव लिए हो बस कमज़ोर।
उठो हृदय में विश्वास भरो , मिट जाए संकट का दौर।
बुद्धि शून्य ना होने देना , हृदय शिला-सा कर मजबूत।
वज्र प्रहारी बन जाओ तुम , सक्षम होकर दिव्य सबूत।
असफलता से सीखो हँसना , बने सफलता की ये राह।
कमज़ोरी खोज़ सुधारो तुम , बढ़ो लिए दुगुना उत्साह।
हारो मत जीतो खुद को तुम , लिए हौंसला भरो उड़ान।
मंज़िल भी इकदिन पाओगे , अगर चलोगे दिल में ठान।
बाज निशाना लेकर बढ़ना , करो खुदी को तेज़ बुलंद।
काग होशियारी तुम रखना , चल वाणी में घोल सुगंध।
मकड़ी-सी लगन उमंग रखो , चींटी-सम श्रम रखो विश्वास।
चोटी पर जाकर बैठोगे , पाकर सुभर सही अहसास।
जोश रगों में भरके चलना , तूफ़ानों की लेकर चाल।
निर्बल धूल उड़ेगी ‘प्रीतम’ , निखरेगा जीवन का हाल।
धैर्य हौंसला ताक़त बनता , मिट जाता है तब अवसाद।
वर्षा से ज्यों तरु बढ़ते हैं , चाहत से यूँ दिल हों शाद।
#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना