मातृ रूप
तुम ममता की मूरत मैया
तू जननी, जाया है,
तेरे आँचल की छांँव में
हमने जन्नत पाया है।
विविध रूप में माता तुम
इस जग की स्रष्टा हो,
तुम गुरु, वैद्य, जीवनदाता
तुम ही पालनकर्ता हो।
नारी रूप में नर को जनती
अवनि रूप में भोजन देती,
गौ रूप जग पालन करती
अन्य रूप दुख दारिद्र्य को हरती।
हम क्या मोल चुकाते इनका
पल भर चैन न पाती तुम,
तेरे सीने चीड़—चीड़ कर
अपनी तिजोरी भरते हम।
पर सोचो, अगली पीढ़ी क्या
सुख चैन का जीवन पाएगी?
बिना संतुलित विकास नीति के
धरा मातृ रूप रह पाएगी?
(मौलिक व स्वरचित)
श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)