माता-पिता भगवान
करें हम माता-पिता की सेवा,ये फर्ज है संतान का।
इस धरती पर और ना दूजा रूप कोई भगवान का।।
वृद्धाश्रमों में रहने को संतान करें ना इनको मजबूर।
कभी ना आये वक्त ऐसा रहना पड़े इन्हें घर से दूर।।
इनकी तो छत्रछाया से वंचित कोई भी ना हो सदन।
दु:ख ना पायें माता-पिता ना करें ये कभी भी रुदन।।
कष्ट इन्हें गर देंगे तो हम तिरस्कार पायेंगे संतान का।
इस धरती पर और ना दूजा रूप कोई भगवान का।।
माता-पिता के चरणों में ही तो सच्चा स्वर्ग हमारा है।
इनकी सेवा-पूजा करने से ही होता उद्धार हमारा है।।
प्रथम गुरु जिनकी शिक्षा ने जीवन हमारा संवारा है।
इनके आशीर्वाद से तो सुधर जाती जीवन-धारा है।।
सेवा-आराधना करना इनकी यह फर्ज है संतान का।
इस धरती पर और ना दूजा रूप कोई भगवान का।।
यदि नहीं हम करेंगे सेवा,संतान कहां से सीखेगी?
आचरण से ही सीखती है फिर हम पर क्या बीतेगी?
जैसा करेंगे आचरण हम सब वैसा ही फल पायेंगे।
बोया पेड़ बबूल का हमने तो आम कहां से खायेंगे?
नि:स्वार्थ भाव से सेवा करना यही फर्ज संतान का।
इस धरती पर और ना दूजा रूप कोई भगवान का।।
अनंत उपकार हैं हम पर उनके,कर्ज नहीं चुका सकते।
जूती खाल की बनवा दें,ॠण से उॠण नहीं हो सकते।।
सुख-सुविधाएं हमें देने की खातिर,वे तो कष्टअपार सहते।
कोख में रखती मां बालक को,पाल-पोस नव जीवन देते।।
माता-पिता की सेवा करें,यही आधार है हमारे मान का।
इस धरती पर और ना दूजा रूप कोई भगवान का।।
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