“माटी से मित्रता”
“माटी से मित्रता”
मेरा बचपन जिस गली की धूल-माटी में खेला
भुला नहीं पाऊंगा उसे किसी बुलंदियों की छाँव में,
जिन्दगी की शाम जहाँ भी हो मेरी
पार्थिव काया को दफ़्न कर देना मेरे गाँव में…।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
“माटी से मित्रता”
मेरा बचपन जिस गली की धूल-माटी में खेला
भुला नहीं पाऊंगा उसे किसी बुलंदियों की छाँव में,
जिन्दगी की शाम जहाँ भी हो मेरी
पार्थिव काया को दफ़्न कर देना मेरे गाँव में…।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति