माटी के सपूत
हे माटी के सपूत! तुम्हें शत-शत नमन,
बंजर पड़ी धरा भी तुम बना देते चमन।
बाजुओं में जमाने की ताक़त है तुम्हारे ।
तुम पर ही आश्रित हैं शहर-गांव हमारे ।
शहरी चकाचौंध हो या हों गांव गलियारे ।
हे धरतीपुत्र ! हैं सब मात्र तुम्हारे सहारे।
कसरत से तुम्हारी “मयंक” मात्र ही नहीं,
चमकते हैं दुनिया में असंख्य चाँद-सितारे ।
✍ के. आर. परमाल “मयंक”