प्रतीक्षा में गुजरते प्रत्येक क्षण में मर जाते हैं ना जाने क
बुझा दीपक जलाया जा रहा है
वक्त की हम पर अगर सीधी नज़र होगी नहीं
रमेशराज की ‘ गोदान ‘ के पात्रों विषयक मुक्तछंद कविताएँ
संबंध की एक गरिमा होती है अगर आपके कारण किसी को परेशानी हो र
मुझे जब भी तुम प्यार से देखती हो
रास्तों को भी गुमनाम राहों का पता नहीं था, फिर भी...
न जाने कितनी उम्मीदें मर गईं मेरे अन्दर
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
उसी वक़्त हम लगभग हार जाते हैं