माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान
चाक घुमा कर हाथ से, गढ़े रूप आकार।
समय चक्र ऐसा घुमा, हुआ बहुत लाचार।।
चीनी झालर से हुआ, चौपट कारोबार।
मिट्टी के दीये लिए, बैठा रहा कुम्हार।।
माटी को मत भूल तू, माटी के इंसान।
माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान।।
© हिमकर श्याम