मां
मां
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रग-रग में हे लहू तुम्हारा,
सांसों में है खुश्बू तुम्हारी।
मन मंदिर में तुम ही हो मां!
हर-पल आती याद तुम्हारी—–
दिल रोता है,मन रोता है पर!
मां !कहीं नजर नही आती हो,
ग्रन्थों की तरह अनंत ज्ञान था,
मेरे जीवन पथ में-
दिव्य प्रकाश भरा था!!!
मां!में ही संसार बसा था,
ममता की मूर्ति हे होती–
जिसके प्यार की कोई
सीमा नहीं होती।
चितवन मां की हर और है,
परिताप जब भी होता मन,
मां रहिमाना बन जाती है—
असीम प्यार हे करती,
जब कोई विपदा हे आती-
सारथी है बन जाती!
अपना सर्वस्व न्योछावर करती,
ऐसी ममता की देवी हे होती——-
मां !ऐसी ही होती——
ऐसी है—
होती!!
मां!
सुषमा सिंह *उर्मि,,