मां
माँ
(1)
जननी, माँ, प्रसू,धात्री,वत्सला,सुदर्शना ममतामयी
ओस कणों सी निर्मल कोमल जीवन बगिया सरसा गयी
आँखों में है नीर तेरे ,माँ त्याग है तेरे आँचल में
नित कष्ट नए सहकर माँ ,मेरा सौभाग्य तुम चमका गयी।
(2)
उदार मन वात्सल्य निमग्न, है स्नेहपूर्ण स्पर्श
सहती पीड़ा हो प्रेमस्लंग्न, करती त्याग सहर्ष
कड़ी धूप में चाँद सी शीतलता,माँ का आँचल
संजीवनी कभी नीम सी यह माँ नित नव आदर्श।
(3)
माँ मेरी हो पहचान तुम,उन्मुक्त गगन की उड़ान तुम
अर्मान हो हर एक बेटी का,ईश्वर का मुझे वरदान तुम
मेरी प्रेरणा-पथ प्रदर्शक,तुम हो माँ मेरी जीवन रक्षक
निशब्द है “नीलम” लेखनी माँ खुद ममता का सम्मान तुम।
स्वरचित
नीलम शर्मा
वसंत कुंज नई दिल्ली