मां मेरा संबल
थक कर उदास यूं ही बैठी थी आज
मां की बहुत याद आ रही है
मां जो लौरी सुना रही है
आंचल में मां के मुझे गहरी नींद आ रही है
मैंने तो बताया ही नहीं दर्द अपना
फिर मां की आंख क्यों भीगी जा रही है
हताश न हो उठ चल
मां उंगली पकड़ मुझे फिर चलना सीखा रही है
समय की मार से बदला है मां ने खुद को
मां रोटी परोसने के साथ रोटी कमा रही है
कहीं छूट न जाऊं पीछे इस भाग दौड़ में
मां हर कदम तेजी से मेरी और बढ़ा रही हैं
दूर पास धरती आकाश, मां तुम ही हो
जो हर कदम मेरा संबल बढ़ा रही है
हां मां जीवन के इस मोड़ पर तुम्हारी बहुत याद आ रही है!!!
अंजली A
दिल्ली रोहिणी