मां तुम बहुत याद आती हो
“मां तुम बहुत याद आती हो”
पहले मेरी एक मामूली सी छींक पर तुम चिंतित हो जाती थी,
डांट डपटकर घरेलू नुस्खों के साथ कड़वी दवा भी पिलाती थी,
अब कोई नहीं जो तबियत पूछे मेरी,
मां तुम बहुत याद आती हो…….
कहीं आते जाते हर बार मुझे पूछा करती थी, नहीं दिखता घर में तो तुम चिंता करती थी,
रात में बाहर घूमने से मना भी करती थी,
मां तुम बहुत याद आती हो…….
घर में तुम्हारी आवाज सुनने को मेरे कान तरसते हैं,
नहीं सुनकर तुम्हारी आवाज मेरे आंसू बरसते हैं,
अब वो मधुर आवाज बस यादों में है,
मां तुम बहुत याद आती हो…….
काश तुम नहीं जाती मां मैं अकेला नहीं होता,
याद करते हुए तुमको मां मैं यूं नहीं रोता,
क्यों छोड़ गई मुझको तुम मां,
मां तुम बहुत याद आती हो…….
याद में तेरे आंचल के ये सिर झुका हुआ रहता है,
जीवन में सबकुछ होकर भी कुछ खाली सा लगता है,
सब दोबारा मिल सकते हैं पर मां नहीं मिल सकती,
मां तुम बहुत याद आती हो, मां तुम बहुत याद आती हो।।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर छत्तीसगढ़