“मां” जो तुम में हैं …
मैं भर झोलियां मां की यादों को लाया हूं
कुछ यहां से लाया कुछ वहां से लाया हूं
ढेर नादानियां कर के उस को सताया हूं
न जाने बार कितनी मैं मां को रुलाया हूं
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पीपल-बरगद के पेड़ों पे जल चढ़ाया हूं
मां के साथ मैं गंगा की आरती उतारा हूं
पूजाकर पहाड़ों की मैं उनको बचाया हूं
प्रकृति से प्यार करना तो मां से पाया हूं
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मान सम्मान जीवन का वरदान पाया हूं
तेरे चरण में ही ज्ञान का भंडार पाया हूं
प्यार ही नहीं सब कुछ बेशुमार पाया हूं
खुशियों का एक अद्भुत संसार पाया हूं
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ज़िंदगी से जूझने का मैं विज्ञान पाया हूं
तुम्हीं से अच्छे बुरे की पहचान पाया हूं
मेरे लिए क्या ठीक मां से जान पाया हूं
दुआओं का भी तुम्हीं से अंबार पाया हूं
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जमीं आकाश हर जगह मैं ढ़ूढ़ आया हूं
चांद सूरज सभी से तो पूछकर आया हूं
फूलों की खुशबुओं से भी सूंघ आया हूं
मां जो तुम में है वो न किसी में पाया हूं
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रामचन्द्र दीक्षित “अशोक”
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश