मां जीवन का सुख सागर
मां पर विशेष
***मां जीवन का सुख सागर***
मां उर्मि है, मां ज्योति है ,मां जीवन का सुख सागर
मां की ममता,मां का प्यार ,मां जीवन का सुख सागर
आंख मिची जब पुत्र को देखा ,मां का ह्रदय तड़प रहा
चहुंओर वो चक्कर काट काट के ,चहुंओर वो मन्नत मांग मांग के ,संसार में सबको दिखलाया
अपनी थकान अपनी व्याधि को ,भूल गई वो मां ही थी
जगह-जगह फिर लेकर डोले वो भी प्यारो मां ही थी …
मां का जज्बा कम न था ,जीवन में सब से लड़ कर भी
आगे चली वो मां ही थी ,चार पुत्र और एक बहन थी
प्यार की ममता सबमें भर दी,मां का आंचल वो सागर है
जहाँ प्यार प्रेम की नदी बहा दी
सच कहता हूं मेरी मां तो
जीवन रूपी स्वर्ग रही
चाह नहीं स्वर्ग की मुझको ,मां के आंचल नित रहूं….
एक छोटी सी बात तुम्हें ,और सब को बतला देता हूं
प्याज काटते आंसू गिरते ,मां बोली ! रुक जा बेटे
ये काम अभी तेरा नहीं है मां अपने पुत्रों को रोता
देख तभी रोने लगती
सच कहता हूं
मां चरणों में जन्नत भी छोटी रहती ,मेरी मां रही सदा संघर्षी
सभी बेटे को खूब पढ़ाया ,संस्कारों की गंगा बहा दी
पता नहीं क्या सब माताएं
मेरी मां जैसी होती ,मेरी मां जैसी होती
हां मेरी मां जैसी होती ……..
मां चरणों में नित्य हूं मैं ,यह आश सदा करता हूं मैं
कुछ गलती हो जाए तो मां ,माफी नहीं!माफी नहीं!
देना दो से चार,,देना दो से चार
कम से कम मैं कुपथ पर तो ,जाने से बच जाऊंगा
कृत्य कृत्य मै धन्य कृत्य ,ऐसी मां को पाकर मै
ऐसी मां को पाकर मै,स्वर्गो की आश करु मै क्यो
फिर स्वर्गो की आश करु मै क्यों ………………
मां उर्मि है, मां ज्योति है मां जीवन का सुख सागर
मां की ममता ,मां का प्यार मां जीवन का सुख सागर
{ सद्कवि }
प्रेम दास वसु सुरेखा