मां गोदी का आसन स्वर्ग सिंहासन💺
माँ गोदी का आसन स्वर्ग सिंहासन
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अतुल्य अनमोल भूस्वर्ग
करुणा ममता प्यार भरी
स्नेहमयी मां की गोदी
खेल कूद से थक गया
चलते चलते थक गया
थकते थकते थकता गया
चाह रहा बैठुं कहीं पर
बिन बैठे खड़ा रह गया
ऐड़ी थाई में कठोर दर्द
पत्थर बन खडा रहा पर
बैठन हिम्मत कर न सका
वह मां की गोदी थी नहीं
विश्राम एक पड़ाव था
मां गोदी स्वर्ग देवी की गोदी
जिस पर बैठे वीर लाल
मां को प्रेम कर ना सके जो
समझ कर भी समझ न सका
इस व्यथा से बैठना चाहा
पर वह मां की गोदी थी नहीं
मां गोदी में स्वर्ग का प्यार
चिंतामुक्त पलकों में निंदिया
दुख गोदी में सुरव की निंदिया
चाहा विश्राम आराम करूं
सोच सोच पर बैठ न सका
मां की गोदी में विराम पड़़ा
मेरी थोड़ी सी रुदन पर मां
घबड़ा आंसू बहा रोती थी
आंसू मिल मेरे आंसू से
दुख .मेरा छूमंतर करती
गोदी बैठ खर्राटे भरता था
सकून निद्रा आरम फ़रमाता
मां की गोदी आज रही नहीं
जिम्मेदारी बोझ भरी पड़ी
हल्का करना चाहा कहीं
बैठ जरा पर बैठ न सका
गोदी में प्यार ममता नहीं था
मां जब आंसू बहा रोती थी
देख दुखी हो जाता था मन
दुःख सुख आंसू मूल्य ज्ञात हो
पढ़ लिख आगे बढ़ता रहा
निज आंसू की व्यथा से
बैठन चाहा पर बैठ न सका
गोदी इंतजार बना ही रहा
नादान अभागा इंसान एक
मां चल वसी किस गोद बैठूं
चाह कर भी न बैठ सका
सुझा एक विचार दिमाग में
पढ़ लिख सेवा सुखी मन
भारती मां की गोद में बैठूंगा
प्रेम स्नेह मां ममता पाऊंगा
जन सेवा अवसर लेकर
धर्म ईमान सत्यनिष्ठा वफादारी
देश मां का सेवा से बैठूंगा कही
पर रिश्वतखोरी बेईमानी झूठ
धोखाधड़ी आसन जमा बैठा
कैसे बैठूं गादों से गोदी भरा हुआ
मां .देखने को भी मना कर गई
लाल लालिमा से मां खिलती थी
पर कलंकित गोदी से दूर हटा
परलोक निहार . आंसू बहा रही
भ्रष्टाचार बेईमानों इस दुनिया में
ईमानदारों की जगह बचा कहाँ
खली पेट ईमानदारी का पेटी भरा बेईमानी का तान सीना घूम रहा
भ्रष्टाचार नए नुक्से निकाल रहा
ईमानदार मिट्टी गोदी निंद्रा ले रहा
भ्रष्टाचारी रंगमहल के कांटे पर
आराम सकून नहीं पा रहा
वफ़ादार जश्न मना रहा पर भ्रष्टाचारी कैदखाने में किस्मत आंसु बहा रहा
हे सत्य निष्ठा कर्मयोगी सुखद कर्म आंसु जन दुःख आंसु में मिला
जग पाप धो कर लाल लालिमा बन
मां की गोदी बैठ सदा सुख पा रहा
ईमान धर्म विश्वास पर टिका रहा
भारत माता गोदी बैठ मुस्कुरा रहा
मान सम्मान प्रतिष्ठा गौरव पा रहा
विजय सत्य धर्म ईमान का हो रहा
मर्म समझ बुझ से हर्षित हो रहा
दिल से चाह गोदी बैठने बुला रहा ।
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तारकेश्वर प्रसाद तरुण