मां की महत्ता समझ में आये
पूर्ण-चन्द्र की शीतलता सी
खिले-पुष्प की कोमलता सी
मृदुल-स्नेह की विह्वलता सी
ईश की अनुपम सुन्दरता सी.
दायित्व निभाती हर पल सारे
बहाती ममता साँझ-सकारे
निर्बाध रूप सरिता सी बहकर
विघ्न अनेकों सहती अक्सर.
मूढ़-असभ्य-अशिक्षित-निर्धन
शिष्ट-शालीन या स्व-अवलंबन
नयन में अश्रु कंठ में क्रन्दन
सुध-बुध खोती मोह में तत्क्षण.
अबोधवश या अभाव के वश
हुई भूल जो कोई बरबस
माँ की महत्ता समझ में आये
अवसान दिवस का हो ना जाये.
भारती दास ✍️