माँ
ओ ममता की अथाह सागर,
मेरे शब्द हैं खाली गागर।
किन शब्दों से नमन करूँ माँ,
आप स्वयं करुणा की आखर।।
बनती थी जब तेरी लोरी,
मेरी निंदिया माँ।
बनती थी जब मेरी ताकत,
तेरी बिंदिया माँ।।
अपने अंकों में भर मुझको,
जब दुलराती थी।
सारे जहाँ की खुशियाँ,
तब मैं पाती थी।।
पढ़के मेरा चेहरा मेरी ,
भूख समझ लेती थी।
मुझको आगे बढ़ने का,
हर रोज दुआ देती थी।।
भर देती उत्साह कभी,
जब मैं थक जाती थी।
मेरा माथा चूमती जब,
मै विद्यालय जाती थी।।
आज भी मेरे पथ की प्रेरक,
तेरी छाया है।
तेरे अन्तस् का टुकड़ा ,
मेरी काया है।।
आज भी प्रतिबिम्ब आपका,
आता है सपनो में।
भोर होते ही मैं भी माँ,
खो जाती अपनो में।।
कोई दिन ऐसा न जाता,
स्मृति में माँ आती न हो।
और अधूरी तड़पन को माँ,
आकरके समझाती न हो।।
पूर्ण निर्वहन हो जाये,
फिर अपने पास बुलाना माँ।
नहीं मिली अन्तिम क्षण में,
तुम वहाँ मुझे मिल जाना माँ
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी