‘माँ’
वात्सल्य भाव है सत्य सनातन,
इसके बिन दुखित शिशु जीवन।
माँ के हृदय में ममता वो बसती,
निर्भय हम पलते जिसके उपवन।
भरती अपने आँचल में दुख,
बच्चों को देती सारे ही सुख।
अपना सुख कर दे वो किनारे,
मुरझाने ना दे बच्चों का मुख।
हृदय कोष है अज़ब निराला,
खुला ही रहता उसका ताला।
भर-भर बांटे जीवन भर भी,
वो रिक्त नहीं कभी होने वाला।
करना सदा माँ का सम्मान ,
हर पल रखना उनका ध्यान।
सदा ही माँ के चरण पखारें,
पाओगे सदा सुख का वरदान।
सारे तीर्थ हैं सब व्यर्थ तुम्हारे,
बने न जो तुम उसके सहारे।
अंत समय कर लो तुम सेवा,
सुख-वैभव खेलेंगे तुमरे द्वारे।
-गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार (उत्तराखंड)