-• माँ •-
हर किताबों की रचना,. पढ़कर मिला यही ज्ञान
तीनो लोकों में माँ से बढ़ा, नहीं कोई और महान
मत पूजो पत्तर की मूरत, सिखाए पढ़ाई विज्ञान
समजो नादनो स्वयं विराजे,. माँ रूप में भगवान
कितने कष्ट उठाए है,. कभी नहि किया मलाल
दुखों में भी मुख से निकले, सुखी रहे मेरा लाल
स्वर्ग जिनके चरणो में होता, माँ एक मात्र नाम
माँ के चरणो में सारे तिरत, माँ से बड़ा न धाम
माँ की खोख से जन्मे रिश्ते माँ से स्वर्ग घर बार
माँ ही जननी माँ ही भगवान, माँ से होते त्योहार
रिश्ते नाते चाहे होय, माँ की ममता समान कोई
जो नर करे न माँ की क़दर, वो नर अभागा होई
कई जन्मो उपरांत भी नहीं चूकते माँ तेरे उपकार
कई पोतियाँ भर जाएगी माँ की महिमा है अपार
घर तो माँ से ही होता है, बिन माँ के कहे मकान
बिन माँ के घर में रहे सन्नाटा लागे जैसे स्मशान
धरणी की हर माताओं का गाए ‘राज’ गुणगान
जन्म दिया है जिसने मुझको वो भी माँ है महान
✍? राज मालपाणी,.’राज’
शोरापुर-कर्नाटक
मो-८७९२१४३१४३