माँ
कितनी गहराई है तेरे मन की माँ
रोज़ उतरता हूँ
गोते लगता हूँ
इस प्यार के सैलाब में
एक ख़ुशनुमा नदी बहती है
तेरे मन में
एक ऊँचाई है स्वाभिमान की
तेरे ज़हन में
सीमाओं में रह कर
सीमाओं को जीतना
यह तुझ से ही सीखा है ना माँ
चट्टान से इरादों वाली
मोम सी माँ
प्यार की बहार है तो
आँधियों से बचाती दीवार भी
मीठी फुआर है तो
तूफ़ानो में छुपाती आड़ भी
एक रूप हैं अनेक रंग भी
इस इंद्रधनुषी माँ का
एक रंग मैं भी हूँ
एक रंग मेरा भी है
संदीप व्यास
१ अगस्त, २०१८
न्यू जर्सी, अमेरिका