Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Feb 2024 · 2 min read

लघुकथा – “कनेर के फूल”

लघुकथा- “कनेर के फूल ”

“तुझे पता है सुमन पहले ज़माने में कनेर के फूल पैसों के बदले चलते थे। इन फूलों से जो चाहे ख़रीद सकते थे।” ग्यारह वर्षीय कुसुम ने पार्क में कनेर के बिखरे फूलों को चुनते हुए छोटी बहन सुमन से कहा।
“पर दीदी, कैसे पता चलता था कि कौन सा फूल कितने का है।” सुमन ने अचरज से पूछा।
‘अरे पागल। देख यह फूल ज़्यादा खिल रहा है यानी ये दो रूपए का है। यह पीला वाला थोड़ा कम यह एक रूपए का होगा।’ कुसुम ने एक-एक फूल को पकड़कर उसमे फूंक मारी। फूंक से कनेर की पंखुड़ियां बाजे की तरह और खिल उठतीं। सुमन ने भी उत्सुकता वश एक फूल में हवा भरी, फूल नही खिला।
“दीदी ये तो नही खिला।’
“खोटा होगा। छोड़ उसे।” सुमन ने जल्द ही अपनी झोली में बीस बाईस रुपए के कनेर के फूल भर लिए। काश, कितना अच्छा होता अगर पहला ज़माना होता वह अभी इन सबकी टॉफी चाकलेट खरीद लेती। उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा। वह पहले ज़माने में क्यों नही हुई । उसे बताया गया था। तीन ज़माने हैं। एक वह जिसमे लोग कपड़े नही पहनते थे। उन्हें कपड़े दो तब भी उतार कर फेंक देते थे। दूसरा, जिसमे कनेर के फूल पैसों के बदले चलते थे। तीसरा ज़माना, जिसमे कनेर के फूल नही चलते। उसे यह गूढ़ ज्ञान उसकी बहन से मिला था। “दीदी ने कहा है तो सच होगा। झूठ हो ही नही सकता। काले बादल घिरने पर दीदी कहती हैं, देख सुमन बारिश होगी। और सच मे बारिश हो जाती। सुमन को याद आया एक बार पादरी जोसेफ पार्क में खेलते हुए बच्चों को एक एक टॉफी देकर गए। उनके जाने पर दीदी ने कहा कोई टॉफी मत खाना। यह कड़वी है। ज़हर मिला है। कहते हुए उन्होंने अपने मुंह से अधघुली टॉफी निकाल कर उसके सामने चमकाई और गप्प से पुनः मुँह में रख ली थी। दीदी बहुत समझदार हैं। वह सब जानती हैं। सहसा एक हवा का पुरकशिश झोंका आया। कनेर के पीले संतरी अनेक फूल घास की फर्श पर बिखर पड़े। फ़िज़ा उनकी महक से सरोबार हो उठी। सुमन लपक कर फूलों को चुनने लगी। वह हर फूल में फूंक मारती। उनके मूल्य का अंदाज़ा लगाती। “यह वाला ज़्यादा खिला है यह पांच रुपए का है। यह दो का। यह एक का…।”

Language: Hindi
1 Like · 63 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
महेश चन्द्र त्रिपाठी
ये न सोच के मुझे बस जरा -जरा पता है
ये न सोच के मुझे बस जरा -जरा पता है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
Rajesh Kumar Arjun
2784. *पूर्णिका*
2784. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
प्रेरणा और पराक्रम
प्रेरणा और पराक्रम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तुम होते हो नाराज़ तो,अब यह नहीं करेंगे
तुम होते हो नाराज़ तो,अब यह नहीं करेंगे
gurudeenverma198
वो मुझे रूठने नही देती।
वो मुझे रूठने नही देती।
Rajendra Kushwaha
खत्म हुआ जो तमाशा
खत्म हुआ जो तमाशा
Dr fauzia Naseem shad
"मार्केटिंग"
Dr. Kishan tandon kranti
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
Arvind trivedi
अधूरी हसरत
अधूरी हसरत
umesh mehra
सफल
सफल
Paras Nath Jha
पलटूराम में भी राम है
पलटूराम में भी राम है
Sanjay ' शून्य'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
व्यंग्य क्षणिकाएं
व्यंग्य क्षणिकाएं
Suryakant Dwivedi
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का...
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का...
Sunil Suman
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
शेखर सिंह
काश कही ऐसा होता
काश कही ऐसा होता
Swami Ganganiya
"नवसंवत्सर सबको शुभ हो..!"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
ग़ज़ल - कह न पाया आदतन तो और कुछ - संदीप ठाकुर
ग़ज़ल - कह न पाया आदतन तो और कुछ - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
माँ का निश्छल प्यार
माँ का निश्छल प्यार
Soni Gupta
है हमारे दिन गिने इस धरा पे
है हमारे दिन गिने इस धरा पे
DrLakshman Jha Parimal
रिश्ता
रिश्ता
अखिलेश 'अखिल'
देवतुल्य है भाई मेरा
देवतुल्य है भाई मेरा
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
*संस्मरण*
*संस्मरण*
Ravi Prakash
सुनो स्त्री,
सुनो स्त्री,
Dheerja Sharma
मोहब्बत
मोहब्बत
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता
Neelam Sharma
सरप्लस सुख / MUSAFIR BAITHA
सरप्लस सुख / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
Loading...