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24 Nov 2018 · 1 min read

माँ

लाख सीखी मैंने होशियारी पर दिल का अभी कच्चा हूँ
मैं अपनी मम्मी के लिए आज भी नन्हा बच्चा हूँ

उसकी आँचल की छाँव तले आज भी वहीं सुख मिलता है
कैसे कह दूँ तू जच्चा नही, तू मेरी माँ और मैं तेरा बच्चा हूँ

कहती थी तू दूर देश से आएगी परियों की रानी
उड़नखटोले पर तूझको जन्नत की सैर कराएगी

परियों की कहानी सुनने को आज भी मन तरसता है
चाँद में रहने वाली परियों से मिलने को मन करता है

कनक कटोरी, दूध-भात, चंदा मामा को तकता रहता हूँ
तेरे हाथों से खाने एक कौर को दर-दर भटकता रहता हूँ

तेरी गोद में सर रखकर आज सोने को मन करता है
पता नहीं क्यों फुट-फूटकर आज रोने को मन करता है

नींद नही है आँखों मे दीवारों से बातें करता रहता हूँ
उन शाम के बोझल आँखों को याद मैं करता रहता हूँ

चार दिनों की बात है केवल चंद फासले चंद रातें है
फिर तेरे फ़टे हाथों की रोटी खाने अपने घर आता हूँ

सुना मैंने मक्के की रोटी, दलिया, चने तुमने मंगवाएं हैं
सत्तू पीसने के लिए घर के पुराने जांत ठीक करवाये हैं

आज भी चलाती है मेरे लिए जांत इस टेक्नोलॉजी के दौर में
कहीं मिलावट ना कर दे कोई चने में मक्के के सत्तू इस डर से

तेरे इस वात्सल्य प्रेम पर कान्हा का जीवन कुर्बान है
हर जनम तुम मेरी ही माँ बनो बस जीवन का यहीं अरमान है

कन्हैया सिंह “कान्हा”
नवादा, छपरा, बिहार

2 Likes · 31 Comments · 398 Views
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