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14 May 2017 · 2 min read

माँ

“मदर्स डे”-सुनने में अच्छा लगता है,आधुनिकता प्रमाणित होती है इससे,हाँ हम सब अंधे दौड़ में हैं,मदर्स डे मनाकर माँ को सम्मान देना चाहते हैं।
हमारे देश की पुरानी माएँ जिनलोगों नें अपने एकलौते पुत्र को देश की रक्षा में झोंक दिया,क्या उनके पुत्र नें उनके लिए मदर्स डे मनाया था,नहीं ना तो क्या उस पुत्र के लिए माँ के ह्रदय का प्रेम कम हुआ।
पुराने समय में माँ हमारे सामने होती थीं तो हर वक़्त,हर लम्हा,मदर्स डे होता था,अगर माँ से बेटा दूर हुआ तो माँ के गले से निवाला अंदर नहीं जाता था,मोबाइल भी नहीं था–आत्मा से आवाज़ निकलती थी-कैसे हो बेटे?खाना खाया या नहीं?बेटे को लगता था कोई पुकार रहा है-शायद मेरी माँ मुझे याद कर रही है।बेचैनी बढ़ती जाती थी और मन माँ के पास चला जाता था।हाँ हम मदर्स डे नहीं मनाते थे,कोई केक नहीं काटते थे।माँ के सामने होना दुनिया का सबसे बड़ा दिन होता था,हम आडंबर नहीं जानते थे।
आधुनिकता के अंधे दौड़ में हम दिवस मनाने पर ज्यादा जोर देते हैं,संवेदना दोनों ओर से मृत होती जा रही है।मैं विश्व की सभी पुरानी माँ को सादर वंदन करता हूँ जो मदर नहीं थीं—“एक समर्पित माँ”थीं।शास्त्र में पाँच माँओं की चर्चा है।इन सबों को मैं सादर वंदन करता हूँ—
“राजपत्नी,गुरुपत्नी,मित्रपत्नी तथैव च
पत्नीमाता,स्वमाता च पंचैता मातरः स्मृता।।”
मैं आधुनिकता से दूर अपने बचपन वाली माँ को बहुत याद करता हूँ जिनके बिना एक एक पल बिताना मुश्किल होता था।सादर वंदन करता हुआ स्वरचित,प्रकाशित पंक्तियाँ अर्पित कर रहा हूँ–
“है जीवन बेचैन मुझे तुम राह दिखा दो
मुझको मेरे बचपन वाली माँ लौटा दो।

युगल छवि तात मात की दोनों आज दिखा दो
मुझको मेरे बचपन वाली माँ लौटा दो।

उठते-गिरते,गिरते-उठते किसी चोट पर
जादू वाली फूँक के सारे राज बता दो।

मुझको मेरे बचपन वाली माँ लौटा दो
मुझको मेरे बचपन वाली माँ लौटा दो।
~अनिल मिश्र,प्रकाशित पंक्तियाँ
मातृ-पितृ चरण कमलेभ्यो नमः।।
मातृभूमि को शत् शत् नमन!!

Language: Hindi
356 Views
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