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16 Nov 2018 · 1 min read

माँ

माँ तो माँ होती है,उस जैसी और कहाँ है।
निश्छल प्रेम की थाती,माँ जैसी और कहाँ है।

नौ महीने नव जीवन की,धारा उसमें बहती।
प्रसव पीड़ा सहती और,मुख से उफ़ ना करती।
लगा माथे पर काला टीका,नजर को उतारती
बेटा बेटी दोनों को,सम भाव प्रेम वो करती।
उसके चरणों के सिवा,मेरा संसार कहाँ है।
निश्छल प्रेम की थाती,माँ जैसी और कहाँ है।

रोज नये विश्वास का,सम्बल माँ बन जाती
इक नये एडिसन की,जन्मदाती बन जाती।
उम्मीदों के दीये जलाकर,राह नई दिखलाती।
मेरे हर एक सपने में तू,साथ नजर है आती।
माँ बसा तुझमे मेरा,सपनों का जहाँ है।
निश्छल प्रेम की थाती,माँ जैसी और कहाँ है।

शब्द नही मिल पाते,अधर खामोश रहते।
माँ तेरी आराधना को,हाथ स्वयं जुड़ जाते।
मन विचलित हो उठता,नैन श्रद्धा से झुक जाते।
ईश्वर भी खुद आकर माँ, तुझे नमन कर जाते।
तुझी से जिन्दा मेरा,बचपन रहता माँ है।
निश्छल प्रेम की थाती,माँ जैसी और कहाँ है।
बबीता “सहर ”
फरीदाबाद

7 Likes · 26 Comments · 1287 Views
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