माँ
माँ ममता की प्रतिमूर्ति स्स्नेहिल रूप दिखाती माँ.
अंगुली पकड़ चलना सिखाती सारे लाड़ लडाती माँ
कभी-कभी वह कान खींचती गलतियों पर धमकाती माँ
दुनिया की इस पाठशाला के क ख ग सिखाती माँ
भले-बुरे का ज्ञान कराती प्रथम गुरु कहलाती माँ
सहनशीलता और त्याग की सीमा भी लांघ जाती माँ
खूब खिलाती बच्चों को खुद भूखी रह जाती माँ
रक्षक बनकर बुरी दिशा से अच्छी राह ले जाती माँ
संस्कारों की घुट्टी देकर चरित्रवान बनाती माँ
बाधाओं से लोहा लेना आत्मविश्वास जगाती माँ
हम जितने दुख देते माँ को हँसकर सब सह जाती माँ
कितना कर्ज है मेरा तुम पर कभी नहीं जतलाती माँ
– – अश्वनी शांडिल्य चंडीगढ़