माँ
आज साहित्य पिड़िया हिंदी मे माँ पर मेरी प्रतियोगी रचना पेश है।
माँ जग मे महान् होती है।
माँ तो भगवान् होती है।
माँ से मिलती जो मोहब्बत,
घर मे बसती है जन्नत।
माँ से मिलती है जो मोहब्बत,
जीने को माँ की जरूरत।
माँ से घर मे बरक़त रहती है,
माँ संस्कारों की सरहद होती है।
माँ बिन जीवन नही चलता,
माँ बिन बेटा नही पलता,
माँ बिन बेटी कहाँ से आयेगी,
माँ बिन रोटी कौन खिलायेगी।
कर लो माँ की सेवा,मिलता रहेगा मेवा,
,माँ से तीज त्यौहार का आना,
माँ बिन न दिवाली,न होली न संक्रात है!
माँ से ही देवता भी पाते भात है।
जब भगवान् धरती पे आते है,
माँ की कोख़ मे शरण पाते है,
कृष्ण को बड़ा किया यशोदा ने,
ब्रहम्मा विष्णु महेश भी शीश नवाते है।
रेणू अग्रवाल
*हैदराबाद।