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9 Nov 2018 · 1 min read

माँ

मख़मल का गद्दा भी जैसे किसी पत्थर सा लगता है..
माँ के बिना तो मुझे ये संसार ही बदतर सा लगता है…

जिसने नहीं की सेवा माँ बाप की अपने जीवन में..
वो हो चाहे दौलतमंद मुझे तो वो बेज़र सा लगता है…

जिसने चलना सिखाया हाथ थाम के बचपन में तुझे..
जवानी आ गई तो अब वही तुझे ज़हर सा लगता है…

मैंने कभी खुदा से माँगा ना कुछ भी दुआओं में अपने..
ये खुशीयाँ मुझे अपने माँ-बाप के मेहर सा लगता है…

चन्दन शर्मा
कटक,उड़ीसा

2 Likes · 29 Comments · 538 Views
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