“माँ” पर दोहे
माँ ही जीवन सार है, माँ ही सुख आधार
बिन माँ कैसे हो भले, जीवन नैया पार!!१!!
माँ से ही जीवन बना, सुंदर सकल जहान
ममता की मूरत बनी, माँ सुख की है खान!!२!!
पुत्र भले हो छह मगर, नहीं किसी में भेद
माँ जैसी कोई नहीं, कहता है ये वेद!!३!!
खुद रह ले भूखी मगर, बरसाती है नेह
जीवन पथ को कर सुगम, सिखलाती है स्नेह!!४!!
माँ मेरी पहली गुरू, माँ से ही संस्कार
माँ से ही होता रहा, सपना सब साकार!!५!!
माँ किसलय की हार है, माँ विस्तृत आकाश
हर क्षण बच्चों पर टिकी, माँ- बाबा की आस!!६!!
नित्य करूँ मैं बंदगी, करूँ रोज अरदास
है “सुब्रत” की कामना, रहे सदा माँ पास!!७!!
नाम- सुब्रत आनंद
शहर- जोठा, बाँका(बिहार)