माँ
माँ
त्याग और, ममता की मूरत ,भोली-भाली ,सी है सूरत ।
देवी का रूप ,है उसमें ,मेरी माता, खूबसूरत ।।
लोरियां, हमको सुनाती ,प्यार के गीत, वह गाती ।
नन्ही सी जान को, दिनभर,सीने अपने से ,लगाती ।।
सुनो ये, मां की दास्तां,कठिन ,जिसका है रास्ता ।
चुनौती हर , कदम पर है ,बड़ी लंबी है, दास्तां ।।
गोद में ,हमको बैठाकर ,रोटियां ,वह पकाती है ।
हमको, पहले खिलाती है,बाद में खुद ,वो खाती है ।।
उस माँ का दर्द, कहूं मैं क्या ,जिसे घर से, निकाला है ।
बिना परिवार के ,जिसने ,दिल के टुकड़े, को पाला है ।।
बेटे की चाह में, भी तो ,उस मां को, खूब सताया है
ताने देकर ,उसे घर में ,अशुभ और ,गैर बताया है ।।
है लक्ष्मी ये, यही दुर्गा ,दया और करुणा, दूजा नाम ।
शीश इसको नवाओं, तुम ,नहीं कोई, अलग पहचान ।।
उसी मां को, बेटे ने ,पराया कह, नकारा है ।
बहू अपनी, को इज्जत दे ,जननी को, धिक्कारा है ।।
हुआ मैं, जब कभी बीमार ,रात भर वह, न सोई है ।
छोड़कर ,चैन सुख सारे ,चिंता में वह, भी रोई है ।।
अपनी माता को, दुख देकर,लालची ने ,रुलाया है ।
लहू देकर न, उतरे जो ,कर्ज उसने, चढ़ाया है।।
लेखक अरविंद भारद्वाज