माँ ग़मे-ज़िंदगी में कहाँ नहीं होती…
जाने कैसे जीते हैं, जिनकी माँ नहीं होती
ग़मे-ज़िंदगी में बोलो, वो कहाँ नहीं होती
माँ से ही होती हैं, ज़िंदगी में सारी रौनकें
कोई ऐसा मक़ाम नहीं, माँ जहाँ नहीं होती
फ़कत ईंट-पत्थरों की इमारतें घर नहीं होतीं
बिना माँ के घर में, कभी जाँ नहीं होती
जिंदगी है इक ग़ज़ल, माँ उसकी है मौसिक़ी
बच्चों की खुशी पर कौन माँ कुर्बाँ नहीं होती
दुनियाँ की हर माँ को झुक कर मेरा सलाम
उसके बिना कोई हस्ती-ए-दुनियाँ नहीं होती॥
ममता कालरा
मेरठ