माँ वाणी की वंदना
वीणापाणि माँ की आज आरती उतारूं और ,
कर जोड़ कहूँ माता मुझे वरदान दो ।
असुरों पे घात किया सुरों को निजात दिया,
माता आज मुझ अधमी पे कुछ ध्यान दो ।।
कर्म यशदायी करें वाणी में भी रस भरें,
भक्तिभावना का आज माता अभिमान दो ।
द्वेष से विद्वेष करें हित उपदेश करें,
धरा पे न गोधरा हो इसका निदान दो ||
बने नहीं अणुबम जले नहीं तन मन ,
प्रेम रसधार बहे ऐसा ही विज्ञान दो ।
मन मकरन्द बहे प्यासा न पपीहा रहे ,
सुर सरिता को अम्ब ऐसा ही रुझान दो । ।
शबरी की प्रीत लिखूँ मीरा का संगीत लिखूँ,
लेखनी को माते बस इतना सा ज्ञान दो ।
ऊँच-नीच भूख-प्यास रहे नहीं धरती पे,
ऐसा माँ जतन करो सबको कल्यान दो ||
द्रौपदी की आन रहे पाण्डवों की शान रहे,
सृष्टि के नियमों में इसका विधान दो ।
शीत बहे चाँदनी से शान्ति झरे दामिनी से,
मलय को आँधी बनने का न गुमान दो ।।
एक हाथ लेखनी हो एक में त्रिशूल रहे,
लेखनी निडर हो त्रिशूल को भी मान दो ।
सृष्टि के सृजन में माँ शारदे का रूप धरो,
अरि के हनन कालिके सी जीभ तान दो ।।
प्रकाश चंद्र रस्तोगी, लखनऊ
(M) : 8115979002