माँ मैं तेरी परछाईं हूँ।
बेटी….
माँ मैं तेरी परछाई हूँ,
फिर इस घर से क्यों मैं पराई हूँ।
अंश मैं तेरे शरीर की हूँ,
तेरी ममता की छांव में बड़ी हुई हूँ,
तूने नाम दिया मुझे, पहचान ये दी,
फिर क्यूँ कहते हैं लोग मुझे,
मैं इस घर में पराई अमानत हूँ।
कुछ दिन की मेहमान हूँ मैं यहाँ पर,
मुझे किसी और के घर फिर जाना है।।
माँ मैं तेरी परछाई हूँ,
फिर इस घर से क्यों मैं पराई हूँ,
इस घर में मेरा बचपन बीता,
तेरी अँगुली पकड़ कर चलना सीखा,
घर के हर कोने में मेरी यादें बसी,
फिर क्यों कहते है लोग मुझे,
मैं इस घर की चिड़िया हूँ,
पल भर का बसेरा है यहाँ पर,
मुझे कही और बसेरा बनाना है।
माँ मैं तेरी परछाई हूँ,
फिर इस घर से मैं क्यों पराई हूँ।।
By: Swati Gupta