माँ +माँ = मामा
मेरी माँ से बढ़कर दो माँ माँ हो
क्या कहें कि क्या से क्या हो,
तुच्छ तृण को स्वर्ण बनाया
माना मैंने की तुम ही खुदा हो l
शब्द नहीं जो वर्णित कर दू
कद नन्हा पर काव्य न रच दू,
भाव भवर में भ्रमित भान का
प्रेम प्रबल में अपराध न कर दू l
तर्पण सच्चा सत्य प्रतिष्ठा हो
हम कैसे मानें की इंसान हो,
बरबस आते हो हर पीड़ा में
क्यों ना तुमको सब अर्पण हो l
दीन हीन के दिन बदले है
काले थे बादल अब उजले है,
छटी घटा जो घोर घन्य थी
श्याह निशा के तुम दिनकर हो l
ओजस्वी, ज्ञानी,मौनी मानक हो
हम हैं रज कण पर तुम साधक हो,
शांत सवेरा कड़े कर्म का
अग्निपथ के तुम धावक हो l
अस्तित्व शून्य का शौर्य बनाया
राह शूल का मूल घटाया,
चाह रही है तट पाने की
टूटी नैया के तुम माझी हो l
महेन्द्र कुमार राय
9935880999