माँ तो आखिर माँ है
कोई राजा था न रानी
सुन लो जरा कहानी।
प्यास लगी जब प्राणी को
धरती ने नदिया दी,
भूख लगी जब प्राणी को
फलों की बगिया दी।
रोग हुआ जब मानव को
जंगल उगाकर औषधियाँ दी,
ठण्ड धूप बारिश से बचाने
कुरबान होकर आशियाँ दी।
माँ तो आखिर माँ है
वो सदा उपकार करती है,
पर मानव ऐसी संतान है
जो सदा तिरस्कार करती है।
मेरी प्रकाशित काव्य-कृति :
माटी के रंग से चन्द पंक्तियाँ हैं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट अवार्ड प्राप्त।