माँ तु सुन रही है ना
माँ,
तु सुन रही है ना!
आज फिर कराह उठा हूँ दर्द से
जैसे बचपन में रोता था
अक्सर गिरने के बाद!
मगर तब तुम थी खड़ी
मुझे संभालने को!
आज तो बिल्कुल
अकेला हूँ, बेबस हूँ
तुमसे इतनी दूर
चले आने के बाद!
माँ,
तु सुन रही है ना!
सारी रात सो नहीं पाता हूँ,
तलाशता रहता हूँ तकिये में
तेरी गोद का सुकून
और ममताभरी थपकियाँ!
वो काजल के टीके
मिट गए हैं अब मेरे माथे से,
जो तुमने लगाए थे
ज़माने भर की नज़रों से
मुझे बचाने के लिए!
माँ,
तु सुन रही है ना!
कुमार करन ‘मस्ताना’
पलामू, झारखण्ड